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तोरई की खेती से किसान कमा सकते है मुनाफा, जाने तोरई की उन्नत किस्में

तोरई की खेती से किसान कमा सकते है मुनाफा, जाने तोरई की उन्नत किस्में

तोरई वर्षा ऋतू में होने वाली सब्जी है। तोरई को तुराई और तोरी के नाम से जाना जाता है। यह फाइबर और विटामिन से भरपूर सब्जी है। तोरई के पत्ते मध्यम आकार के होते है, इन पत्तों का रंग हल्का हरा होता है। 

तोरई दिखने में लम्बी, पतली और कोमल होती है, साथ ही इसके अंदर का हिस्सा और बीज हल्के क्रीमी रंग के होते है। तुरई में स्वाभाविक रूप से कम कैलोरी पायी जाती है। 

तुरई का इंग्लिश नाम जुकीनी है, इसकी तासीर ठंडी होती है। साथ ही तुरई में आयरन , प्रोटीन और कैल्शियम जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते है। साथ ही तुरई में बहुत से बायोएक्टिव कॉम्पोनेन्ट भी पाए जाते है। 

तुरई उभरी हुई त्वचा और लम्बी , बेलनाकार सब्जी है। तुरई की खेती मुख्य रूप से नगदी फसल के रूप में की जाती है। तुरई पर आने वाले फूल पीले रंग के होते है ,इन्ही पुष्पों पर तुरई लगती है जिसका उपयोग सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। 

तुरई की खेती कब की जाती है ?

तुरई की खेती किसानों द्वारा जून से जुलाई के माह में की जाती है। इसकी फसल को पकने में 70 -80 दिन का समय लगता है। तुरई की खेती ज्यादातर वर्षा ऋतू में की जाती है। इसकी अच्छी उपज के लिए खेत में नमी होना जरूरी है। 

तुरई की उन्नत किस्में 

तुरई की कई किस्में ऐसी है , जिनका उत्पादन कर किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकता है। तुरई की किस्मों का पकने का समय अलग अलग है। तुरई की उन्नत किस्में कुछ इस प्रकार है : को, -1 (co,-1 ), (पी के एम 1 ), घीया तोरई, पूसा नसदार, पूसा चिकनी, पंजाब सदाबहार और और सरपुतिया तुरई की उन्नत किस्में है। 

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तुरई की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और भूमि 

तुरई की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन भूमि अच्छी जल निकास वाली होनी चाहिए। लेकिन इसकी अधिक पैदावार के लिए दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है। 

नदियों के किनारे पायी जाने वाली अम्लीय मिट्टी में भी इसका उत्पादन किया जा सकता है। तोरई के विकास के लिए आद्र और शुष्क जलवायु की जरुरत रहती है। भारत में तुरई की खेती खरीफ और जायद के सीजन में की जाती है। 

इसके पौधे को शुरुआत में वर्षा की जरुरत रहती है, लेकिन अधिक वर्षा भी तुरई की फसल को खराब कर सकती है। तुरई के पौधो को अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की जरुरत रहती है, गर्मियों में तुरई का पौधा अधिकतम 35 डिग्री तापमान को भी सहन करने की क्षमता रखता है। 

बुवाई के लिए बीज की मात्रा और बीज उपचार 

तुरई की बुवाई के लिए पहले खेत की जुताई करे उसके बाद जब मिट्टी का रंग भुरभुरा हो जाये तो उसमे बुवाई का काम प्रारंभ करें। प्रति हेक्टेयर में 3 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। 

ग्रीष्म काल में तुरई की बुवाई के लिए जनवरी से मार्च का महीने बेहतर माना जाता है और यही खरीफ सीजन में बुवाई के लिए जून से जुलाई का महीना उपयुक्त माना जाता है। लेकिन बीज की बुवाई से पहले इसका उपचार कर लेना बेहतर है।

बीज उपचार के लिए थीरम की 3 ग्राम मात्रा को तुरई के प्रति किलोग्राम बीज में अच्छे से उपचारित कर ले। ऐसा करने से तुरई की फसल में लगने वाले फफूँदी रोग से बचाया जा सकता है।

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तुरई की खेती के लिए खाद और उर्वरक 

तुरई की अच्छी पैदावार के लिए किसान गोबर की खाद का उपयोग कर सकते हैं, जुताई के 15 -20 दिन पहले खेत में 200 -250 क्विंटल खाद को डाल दे। आख़िरी जुताई करते वक्त ध्यान रहे खाद को अच्छे से खेत में मिला दे। 

साथ ही अधिक पैदावार के लिए किसान पोटाश (80  kg ),फास्फोरस (100 kg ) और नाइट्रोजन (120 kg ) का भी उपयोग कर सकते है। इसकी आधी मात्रा का उपयोग बुवाई के वक्त और आधी मात्रा का उपयोग बुवाई के एक महीने बाद कर सकते है। 

कैसे करें सिंचाई प्रबंधन ?

वर्षा ऋतू में तोरई की फसल को ज्यादा पानी की जरुरत नहीं रहती है , क्योंकि समय समय पर बारिश फसल में पानी की कमी को पूरा करती रहती है। लेकिन गर्मियों के मौसम में फसल को पानी की ज्यादा जरुरत रहती है, इसीलिए खेत में 7 से 8 दिन के बाद सिंचाई करनी चाहिए। ताकि गर्मी की वजह से खेत में सूखा न पड़े और उसका प्रभाव फसल पर न पड़े।

तुरई की फसल में खरपतवार जैसी समस्याएं भी देखने को मिलती है साथ ही बहुत से रोग और कीटों का भी प्रकोप फसल में देखने को मिलता है। इन सभी को नियंत्रित करने के लिए किसान फसल चक्र को भी अपना सकता है। 

साथ ही तुरई की खेती में खरपतवार को रोकने के लिए नराई और गुड़ाई का भी काम किया जा सकता है। इसके अलावा किसानों द्वारा कीटनाशक दवाइयों का भी उपयोग किया जा सकता है। 

कम लागत और कम समयावधि में तैयार होने वाली तोरई की किस्में

कम लागत और कम समयावधि में तैयार होने वाली तोरई की किस्में

आज हम इस लेख के अंदर आपको तोरई की कुछ उन्नत किस्मों के विषय में जानकारी देंगे। तोरई की उन्नत किस्मों के अंतर्गत घिया तोरई, पूसा नसदार, सरपुतिया, को.-1 (Co.-1), पी के एम 1 (PKM 1) आदि प्रमुख फसल हैं। इनकी खेती करने पर किसान भाइयों को काफी बेहतरीन पैदावार हांसिल होती है। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि कोई भी फसल के उत्पादन से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उसकी अच्छी किस्मों की जानकारी होनी चाहिए। जिससे कि उत्पादन के साथ–साथ ज्यादा मुनाफा भी हांसिल हो सके। इसी कड़ी में आज हम आपको तोरई की कुछ उन्नत प्रजतियों की जानकारी देने जा रहे हैं। तोरई की उन्नत किस्मों में घिया तोरई, पूसा नसदार, सरपुतिया, को.-1 (Co.-1), पी के एम 1 (PKM 1) इत्यादि प्रमुख हैं। इनकी बुवाई कर किसानों को काफी अच्छी पैदावार हांसिल होती है। इसके साथ-साथ मुनाफा भी खूब होता है। किसान इन तोरई की किस्मों के माध्यम से अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी वजह यह है, कि इनके उत्पादन के मुताबिक लागत अन्य बीजों की तुलना में कम होती है। इसके साथ ही यह कम समयावधि में तैयार हो जाती हैं।

कम लागत और समयावधि में तैयार होने वाली तोरई की किस्में

को.-1 (Co.-1)

बतादें, कि इस किस्म को तमिलनाडु के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया गया है। इस किस्म के फल का आकार 60 – 75 से.मी. लम्बा होता है। इसके अतिरिक्त लम्बे, मोटे, हल्के, हरे रंग का होता है। इस किस्म की पैदावार क्षमता 140-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। पहली तुड़ाई बुवाई के 55 दिनों के उपरांत की जा सकती है।

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पी के एम 1 (PKM 1)

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस किस्म के फल देखने में गहरे हरे रंग के होते हैं। इसके साथ ही फल दिखने में पतला, लम्बा, धारीदार एवं हल्का सा मुड़ा हुआ होता है। इससे 280-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिल सकता है।

घिया तोरई

तोरई की इस किस्म के फल का रंग हरा होता है। भारत में इस प्रजाति की खेती सामान्य तौर पर ज्यादा की जाती है। इस किस्म के अगर फलों की बात की जाए, तो इसके फल का छिलका काफी पतला होता है। तोरई की इस किस्म में विटामिन की मात्रा ज्यादा पायी जाती है।

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पूसा नसदार

तोरई की पूसा नासदार किस्म का फल हल्का हरा होता है। इसकी ऊपरी सतह पर उभरी नसों की आकृति होती है। इस किस्म का गूदा सफेद और हरा होता है। इसके साथ ही फल की लंबाई 12-20 सेमी. तक होती है। इस किस्म की विशेषता यह है, कि इसकी उत्पादन क्षमता 150-160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

सरपुतिया

तोरई की सरपुतिया किस्म के फल पौधों पर गुच्छों में लगते हैं। वहीं अगर इनके आकार की बात करें तो यह छोटा दिखाई देता है। साथ ही, इस प्रजाति के फलों पर भी उभरी हुई धारियां बनी होती है। इसके फलों का बाहरी छिलका मोटा और मजबूत होता है। इस किस्म की तोरई मैदानी इलाकों में ज्यादा उगाई जाती हैं।